भारत में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पीछे क्या कारण था ?

Table of Contents

बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पीछे क्या कारण था ? | What was the Reason behind Bank Nationalization in India ?

इसमें कोई शक नहीं कि बैंक किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होते हैं और किसी भी देश की अर्थव्यवस्था अपने लोगों के विकास पर निर्भर करती है। देश के नागरिक की तरक्की उनके देश की बैंकिंग प्रणाली की संरचना पर निर्भर करती है। यह भी सच है कि बैंकिंग को एक व्यावसायिक गतिविधि के रूप में भी माना जाता है और यह भी सच है कि यह मुनाफा कमाने की उम्मीद में किया जाता है। भारत में जहां बड़ी संख्या में लोग ग्रामीण क्षेत्र में रहते हैं, निरक्षर हैं और गरीबी रेखा से नीचे हैं और उनके पास भारतीय बैंकिंग प्रणाली में शामिल होने के लिए पर्याप्त साधन नहीं हैं और निजी क्षेत्र के बैंकों को गरीब लोगों में कोई दिलचस्पी नहीं हो सकती थी इसलिए सरकार द्वारा भारतीय बैंकिंग प्रणाली का राष्ट्रीयकरण करने के लिए उठाए गए कदम प्रशंसनीय है सरकार के इस कदम से आवश्यक लोगों को लाभ प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया हैं। इस ब्लॉग में हम भारत में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के कारणों पर चर्चा करेंगे इसलिए ब्लॉग के साथ बने रहें।

www.saarkarinaukri.com

इससे पहले कि हम इस विषय पर चर्चा शुरू करें, इस विषय के प्रत्येक पहलू पर चर्चा करना बेहतर होगा जैसे कि राष्ट्रीयकरण का अर्थ (विशेषकर बैंकों के उद्देश्य में), भारत में बैंकों के राष्ट्रीयकरण का इतिहास, कारण, उद्देश्य, उपलब्धियां और समस्याएं, ताकि हम हमारा निष्कर्ष स्पष्ट कर सके।
यह विषय आईएएस उम्मीदवारों के लिए जीएस पेपर के लिए महत्वपूर्ण है और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के उम्मीदवारों के लिए और
यह सभी लोगो के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जो ज्ञान प्राप्त करना चाहते है इसलिए ब्लॉग के संपर्क में रहें।

राष्ट्रीयकरण का अर्थ क्या है? | What is the meaning of Nationalization?

राष्ट्रीयकरण करने की प्रक्रिया में किसी निजी तौर पर नियंत्रित कंपनियों, उद्योगों या परिसंपत्तियों को सरकार के नियंत्रण में लाने की प्रक्रिया होती है।  आम तौर पर राष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया विकासशील देशों में देखने को मिलती है  राष्ट्रीयकरण की इस प्रक्रिया में सरकार विदेशी स्वामित्व वाले उद्योगों पर और ऐसे उद्योग जिसका देश की अर्थव्यवस्था पर सीधा असर पड़ सकता है उन कंपनियों, उद्योगों या परिसंपत्तियों पर सरकार अपना नियंत्रण स्थापित कर ले या अपना प्रभुत्व स्थापित कर ले।  इस प्रक्रिया को राष्ट्रीयकरण कहा जाता है।
कुछ राष्ट्रीयकरण ऐसे भी हुए हैं कि सरकार ने अवैध रूप से अर्जित संपत्ति या राष्ट्रीय की अखंडता के लिए हानिकारक महसूस किया हो को जब्त कर लिया है  बेहतर ढंग से समझने के लिए फ्रांसीसी कार निर्माता रेनॉल्ट का एक उदाहरण लिया जा सकता है जब 1945 में फ्रांसीसी सरकार ने कार निर्माता रेनॉल्ट की संपत्ति को जब्त कर लिया क्योंकि सरकार ने ऐसा पाया की 1940 से 1944 के दौरान कंपनी के मालिकों ने फ्रांस के नाजी कब्जाधारियों के साथ सहयोग किया था। 

बैंकों के राष्ट्रीयकरण का क्या अर्थ है?

बैंकों के राष्ट्रीयकरण का अर्थ  देश के निजी क्षेत्र के बैंक का सरकार द्वारा उसकी शेयर पूंजी में पचास प्रतिशत से अधिक स्वामित्व हासिल करने के लिए कदम उठाना है।  इस परिक्रिया द्वारा निजी क्षेत्र के बैंक / संस्था को एक सार्वजनिक स्वामित्व वाली इकाई के अंतर्गत लाया जाता है।

बैंक राष्ट्रीयकरण का इतिहास

इससे पहले कि हम भारत में बैंक राष्ट्रीयकरण के इतिहास के बारे में बात आरम्भ करे हमें यह जानना बेहतर होगा कि राष्ट्रीयकरण की अवधारणा कहां से आई है। राष्ट्रीयकरण का इतिहास नया नहीं है सबसे पहले यह सन 1775 में देखने में आया था, जब अमेरिकी क्रांति के दौरान दूसरी महाद्वीपीय कांग्रेस के फरमान द्वारा पोस्टमास्टर जनरल बेंजामिन फ्रैंकलिन के नेतृत्व में पूर्व तेरह कालोनियों में यूएसए पोस्टल सड़कों को अमेरिकी डाकघर के नियंत्रण में लाया गया था। यह प्रक्रिया अमेरिकी संविधान के डाक खंड द्वारा सक्षम अमेरिकी डाकघर विभाग द्वारा सफल बनाया गया। इसके बाद यूनाइटेड किंगडम का स्थान आता है जब वर्ष 1858 में भारतीय विद्रोह के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत सरकार अधिनियम 1858 के प्रावधानों के तहत, ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी का राष्ट्रीयकरण कर दिया। वहाँ बहुत बड़ी सूची हो सकती है जहाँ दुनिया में राष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया को अपनाया गया।

भारत में राष्ट्रीयकरण का इतिहास

जैसा कि हम पहले ही देख चुके हैं कि भारत के लिए राष्ट्रीयकरण की अवधारणा कोई नई नहीं थी क्योंकि भारत के लोगों ने पहले ही ब्रिटिश राज की अवधि में राष्ट्रीयकरण देखा था और राष्ट्रीयकरण के फायदों को पहचान चुके थे। उस समय की मौजूदा सरकार ने ठीक सोचा होगा कि किन्ही विशेष संस्थाओं का राष्ट्रीयकरण करके देश की अधिकतम आम जनता तक अधिकतम लाभ पहुँचाना संभव बनाया जा सकता है या बनाने में मदद मिल सकती है।
राष्ट्रीयकरण की श्रृंखला में भारत में राष्ट्रीयकृत कंपनियों की सूची इस प्रकार है।

  • भारतीय रिजर्व बैंक को वर्ष 1949 में पूर्ण रूप से राज्य के स्वामित्व वाला बैंक बनाने के लिए (भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1949) के तहत राष्ट्रीयकृत किया गया।
  • वर्ष 1953 में एयर कॉर्पोरेशन अधिनियम 1953 के तहत एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण किया गया था।
  • वर्ष 1955 में भारत सरकार ने इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया और उसकी सहायक कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और उसकी सहायक अधिनियम 1955 के तहत पूर्ण स्वामित्व वाले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को जन्म दिया।
  • भारत सरकार ने वर्ष 1969 और 1980 में 14 वाणिज्यिक बैंकों और छह वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने का निर्णय लिया।
  • वर्ष 1972 में भारत सरकार ने भारतीय सामान्य बीमा निगम के तहत 107 बीमा कंपनियों का राष्ट्रीयकरण और पुनर्गठन किया।
  • वर्ष 1973 में भारत सरकार ने कोल इंडिया लिमिटेड के तहत कोयला उद्योग और तेल और प्राकृतिक गैस निगम के तहत तेल और गैस उद्योग का राष्ट्रीयकरण करने का फैसला किया।

भारत में बैंकों के राष्ट्रीयकरण का उद्देश्य क्या था ?

भारत में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के निम्नलिखित मुख्य उद्देश्य हो सकते है

  • सरकार देश की बैंकिंग प्रणाली में आम जनता का अधिक विश्वास पैदा करना चाहती थी।
  • सरकार देश की आर्थिक शक्ति को कुछ हाथों में संकेंद्रण को रोकना चाहती थी।
  • सरकार देश के कोने-कोने में बैंकिंग की आसान पहुंच बनाना चाहती थी।
  • सरकार ग्रामीण लोगों के लिए बनाए गए वित्तीय नियमों को लागू करना आसान बनाना चाहती थी।
  • सरकार चाहती थी कि बहुत छोटे से गांव में रहने वाले लोगों को आर्थिक मदद देकर ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के सपनों को साकार किया जाए।
  • सरकार प्राथमिकता क्षेत्र को समाज के पिछड़े वर्ग के लिए रियायती ब्याज दर पर लागू करना चाहती थी जो राष्ट्रीयकरण के बाद ही संभव हो सकता था।

बैंकों के राष्ट्रीयकरण की आवश्यकता क्यों पड़ी?

भारत सरकार द्वारा निर्धारित राष्ट्रीय नीति के उद्देश्यों को कार्यान्वित करने के लिए एक अनुरूप अर्थव्यवस्था के विकास को पूरा करने के लिए और नीतिओ का बेहतर प्रभाव की जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत सरकार ने 1970 के बैंकिंग कंपनी (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम के तहत बैंकों का राष्ट्रीयकरण लागू किया था। यह अध्यादेश 19 जुलाई 1969 से लागू किया गया था और इस अधिनियम के अंतर्गत 14 वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया

भारत में बैंकों के राष्ट्रीयकरण का प्रस्ताव देश की तीसरी प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार ने अपनी प्रस्तावित योजनाओं और आर्थिक नीति की जरूरतों के लिए बैंकिंग प्रणाली के बेहतर संरेखण को सुनिश्चित करने के लिए बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया क्योंकि सरकार का मानना था कि बैंकों पर निजी नियंत्रण को कम करने से ही योजनाओं का लाभ अधिकतम व ग्रामीण क्षेत्रो तक पहुत पाएगा।

भारत में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के सकारात्मक प्रभाव

भारत सरकार द्वारा बैंकों के राष्ट्रीयकरण के लिए उठाया गया कदम भारत में बैंकिंग उद्योग के विकास में एक प्रमुख मील का पत्थर बन गया। भारतीय बैंकों के राष्ट्रीयकरण के कदम ने देश में बैंकिंग के भविष्य के मार्ग का मार्गदर्शन करने में एक प्रमुख भूमिका निभाई है। बैंकों के राष्ट्रीयकरण की श्रृंखला में भारत के 19 वाणिज्यिक बैंक थे। आइए कुछ ऐसे लाभों के बारे में चर्चा करें जिनसे भारतीय अर्थव्यवस्था को फर्क पड़ा है। : –
01) बैंकों की बेहतर पकड़ (आउटरीच) – बैंकों के राष्ट्रीयकरण के कारण देश के सबसे गरीब व्यक्ति की सेवा के लिए देश के सुदूर कोनों में शाखाएँ खोली जाने पर राष्ट्रीयकृत बैंकों की पैठ और विश्वास बढ़ने के कारण बैंकों की बेहतर पकड़ मजबूत हुई।
02) बचत में वृद्धि – भारत में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के कारण औसत घरेलू बचत को दोगुना करने में मदद मिली क्योंकि आम जनता का विश्वास और देश के कोने-कोने में नई शाखाएँ खोलने और अधिक लोगों की बैंकों तक पहुँच संभव हुई
03) सार्वजनिक जमा में वृद्धि और प्राथमिकता क्षेत्र को ऋण प्रदान करना संभव – भारत में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के कारण एक तरफ विश्वास विकसित करने में मदद मिली और दूसरी तरफ इसने छोटे, कुटीर उद्योग, कृषि और निर्यात क्षेत्र को आसान ऋण प्रदान करने में मदद करने के लिए बैंकों की पहुंच बढ़ाने में भी मदद प्रदान किया और यह भी सरकार द्वारा तय की गई मामूली ब्याज दर पर।
04) दक्षता में वृद्धि – बैंकों के राष्ट्रीयकरण के कारण संबंधित बैंक की जवाबदेही की नई अवधारणा को जोड़ा गया जिससे दक्षता में सुधार हुआ जो बैंकिंग प्रणाली में जनता के विश्वास को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण था।
05) लघु और कुटीर उद्योगों के लिए सशक्तिकरण – निस्संदेह यह उल्लेखनीय है कि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की वृद्धि यहाँ के लघु और कुटीर उद्योगों की वृद्धि और स्थिरता पर निर्भर करता है क्योंकि यह देश की अर्थव्यवस्था में सुदृढ़ता प्रदान करने और रोजगार पैदा करने में मदद करता है। .
06) रोजगार के अवसर प्रदान किए – बैंकों के राष्ट्रीयकरण के कारण देश में रोजगार के नए अवसर पैदा करने में मदद मिली।

07) कृषि क्षेत्र में सुधार – जैसा कि सभी जानते हैं कि कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और भारत में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के कारण सीमांत किसानों और कृषि से संबंधित नौकरियों से संबंधित उद्योगों को ऋण प्रदान करने में मदद मिली है।
08) कृषि पर निर्भरता को कम करने में मदद – भारत में कृषि क्षेत्र की भारी निर्भरता थी और यह प्रति व्यक्ति उत्पादकता में कमी और मौसमी या प्रच्छन्न बेरोजगारी का मुख्य कारण था। भारत में बैंकों के राष्ट्रीयकरण ने अन्य कृषि गतिविधियों को शुरू करने में मदद की जैसे – खाद के वितरक या खुदरा आपूर्तिकर्ता का व्यवसाय, – कृषि संबंधी उपकरणों की मरम्मत का व्यवसाय, – सिंचाई (हार्वेस्टिंग) उपकरण प्रदाता का व्यवसाय, – भंडारण सुविधा प्रदाता का व्यवसाय
, – मत्स्य पालन और पशुपालन का व्यवसाय,– मधुमक्खी पालन का व्यवसाय, – रेशम उत्पादन का व्यवसाय, – वाणिज्यिक वृक्षारोपण का व्यवसाय और कई कृषि सम्बन्धी व्यवसाय। 09) रोजगार सृजन में वृद्धि – बैंकों के राष्ट्रीयकरण ने भी बैंकिंग उद्योग में अधिक से अधिक रोजगार के पद सृजित करने में मदद की। गूगल सर्च के अनुसार राष्ट्रीयकरण से पहले (वर्ष 1969 में) बैंक कर्मचारियों की कुल संख्या केवल एक लाख के आसपास थी, लेकिन आज हमारे पास लगभग दस लाख बैंक कर्मचारी हैं। राष्ट्रीयकृत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक हमारे देश के आर्थिक विकास को चलाने के लिए इंजन बने

वाणिज्यिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण के नुकसान

यह सच है कि हर वस्तु का अपना स्याह पक्ष भी होता है जहां बैंकों के राष्ट्रीयकरण से कुछ फायदे देखे वही कुछ नुकसान भी हुए हैं। आइए हम कुछ प्रमुख बिंदुओं पर चर्चा करें जो भारत के राष्ट्रीयकृत बैंकों के सामने आने वाली प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालते हैं।
01) राष्ट्रीयकृत बैंकों की ग्रामीण शाखाओं में भारी नुकसान – निस्संदेह यह सरकार का महान विचार था कि देश के कोने-कोने में बैंकिंग सुविधा प्रदान की जाए, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता की कमी के कारण सरकार का सपना साकार नहीं हुआ है। परिणामस्वरूप राष्ट्रीयकृत वाणिज्यिक बैंकों को बड़े परिचालन व्यवस्था से वित्तीय घाटे के संचय का सामना करना पड़ा।
02) कृषि अग्रिम पर अतिदेय की राशि में निरंतर वृद्धि – बैंक राष्ट्रीयकरण के कारण वाणिज्यिक बैंकों को किसानों को बड़ी मात्रा में अतिदेय अग्रिमों के संचय की एक नई समस्या का सामना करना पड़ा था। यह सरकार के किसानों के सभी ऋण माफ करने के निर्णय के कारण हुआ।
03) गैर-निष्पादित आस्तियों (Non Performing Assets) में निरंतर वृद्धिराष्ट्रीयकृत बैंकों के वित्तीय स्वास्थ्य तक पहुँचने की प्रक्रिया आरबीआई द्वारा वर्ष 1998 में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों की मान्यता के लिए शुरू की गई थी, लेकिन इसे लागू करने में बहुत देर हो गई थी क्योंकि तब तक अधिकांश वाणिज्यिक बैंकों को पहले से ही घाटे में चल रहे संस्थानों के क्षेत्र में आने वाली गैर-निष्पादित संपत्तियों के संचय की समस्या का सामना करना पड़ा था। गैर-निष्पादित आस्तियों के उच्च अनुपात या कर्जदारों से बैंकों के बकाया होने के कारण बैंक भारी नुकसान उठाने की स्थिति में आ गए थे। अब इस स्थिति में अधिकांश बैंक पूंजी पर्याप्तता अनुपात को बनाए रखने में भी असमर्थ हैं।
04) प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र अग्रिम के लिए बाध्यता – इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्रों के अग्रिमों के लिए उधार देना राष्ट्रीयकृत बैंकों के लिए अनिवार्य था लेकिन इसकी गति अनुमान से धीमी धीमा रहीं है। इसका कारण आंशिक रूप से बैंक अधिकारी राष्ट्रीयकरण से उपेक्षित क्षेत्रों में बदलाव का सरकार का सपना साकार करने में उदासीन रहे।

05) गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थान और विदेशी बैंकों के साथ प्रतिस्पर्धा – इसमें कोई संदेह नहीं है कि राष्ट्रीयकृत बैंक एक बड़ी संख्या में जनता की जमा राशि जुटाने में सफल रहे लेकिन इसे बनाए रखने के लिए राष्ट्रीयकृत बैंकों को हमेशा संघर्ष करना पड़ा क्योंकि डाकघर, अन्य गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों और विदेशी बैंकों के साथ हमेशा एक बड़ी प्रतिस्पर्धा थी। ये सभी संस्थान उच्च ब्याज दरों से आकर्षित करके राष्ट्रीयकृत वाणिज्यिक बैंकों के साथ निकटता से प्रतिस्पर्धा करते रहे।
06) वादों और प्रदर्शन के बीच बड़ा अंतर – भारत में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद की अवधि में सरकार दवारा किये गए वादे और बैंकों के वास्तविक प्रदर्शन के बीच एक व्यापक अंतर देखा गया था जिसका मुख्य कारण सरकार दवारा दर्शाये
नए कार्य दर्शन और नए सामाजिक उद्देश्यों की सराहना करने के लिए बैंक कर्मचारियों की विफलता प्रतीत होती रही। भले ही राष्ट्रीयकृत बैंकों के उद्देश्यों का पुनर्विन्यास हुआ हो लेकिन बैंक कर्मचारी वस्तुतः स्थिर बने रहे जिस कारण राष्ट्रीयकृत बैंकों की प्रक्रियाएं और प्रथाएं पुरानी की पुरानी बनी रही
07) ग्रामीण छेत्रो का धीमा विकासग्रामीण इलाकों में एक मूक क्रांति लाने के लिए और ग्रामीण क्षेत्रों के समुचित विकास के लिए सरकार ने ग्राम गोद लेने की योजना बनाई, लेकिन यह प्रभावी रूप से प्रभावी नहीं हो सकी क्योंकि बैंक कर्मचारी सरकार के मकसद और दूरदर्शिता से प्रभावित नहीं थे। ।
08) नौकरशाही का गलत प्रभाव – बैंकों के राष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया में वाणिज्यिक बैंकों द्वारा सामना की जाने वाली मुख्य समस्या बैंकिंग प्रणाली में नौकरशाही मानी जा सकती है। परिणाम स्वरुप लालफीताशाही ने राष्ट्रीयकृत बैंकों का सुचारू कामकाज बाधित किया। जिस कारण निर्णयों में लंबी देरी, पहल की कमी आदि कारण सामने आये।
09) राजनीतिक दबाव राष्ट्रीयकृत बैंकों का सुचारू कामकाज को केंद्र और राज्यों सरकारों के बढ़ते राजनीतिक दबाव ने भी बाधित किया है। विभिन्न राजनीतिक दबावों के कारण राष्ट्रीयकृत बैंकों को अक्सर बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। क्योंकि यह पाया गया कि राष्ट्रीयकृत बैंक एक विशेष पार्टी को अधिकतम लाभ प्रदान करने के लिए काम करने के लिए बाध्य थे और उन्हें अपना बकाया जमा करने में भी समस्याओं का सामना करना पड़ा।

10) बैंक अधिकारियों में भ्रष्टाचार – भारत में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के नुकसान के तहत राष्ट्रीयकृत बैंकों के शीर्ष प्रबंधन और अन्य कर्मचारियों में भ्रष्टाचार सबसे महत्वपूर्ण कारक बना। इसमें कोई संदेह नहीं कि राष्ट्रीयकृत बैंक देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन गए थे लेकिन उनके द्वारा ऋणों का वितरण सवालों के घेरे में घिरे रहे।

निष्कर्ष

इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत में वाणिज्यिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण ने देश की अर्थव्यवस्था के निरंतर विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण से कुछ नुकसान भी हुए हैं। जब हमने पीछे मुड़कर देखते हैं तो हम पाते हैं कि भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण की आवश्यकता उसके नुकसान की तुलना में अधिक लाभ प्रदान करने वाले थे।
बैंकों का राष्ट्रीयकरण उस समय किया गया था जब सभी बैंकिंग प्रणाली निजी स्वामित्व के अधीन थी और अधिकांश बैंकिंग संस्थाए अचानक रातों रात अपना दरवाजा बंद कर के जमाकर्ताओं का जमा पैसा लेकर भाग जाने की प्रवर्ति बना ली थी जिससे जमाकर्ताओं को अप्रत्याशित बड़ा नुकसान का सामना करना पड रहा था।
बैंकों के राष्ट्रीयकरण के कारण भारत में बैंकिंग प्रणाली की दक्षता में सुधार हुआ।
सुरक्षा के साथ बैंकों में जनता का विश्वास बढ़ाया।
जनता के तहत बचत के व्यवहार में वृद्धि को बढ़ावा मिला
लघु उद्योग और कृषि जैसे पिछड़े क्षेत्रों को बढ़ावा मिला।
इससे धन में वृद्धि हुई और इस प्रकार भारत के आर्थिक विकास में वृद्धि हुई।
बैंकों के राष्ट्रीयकरण से बैंकों की पैठ भी बढ़ी। बैंकों के राष्ट्रीयकरण के कारण
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में के विकास को प्राथमिकता दी गई।

अपनी चर्चा समाप्त करने से पहले हमने व्यक्तिगत रूप इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि भारत में बैंकों के राष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया अच्छी और महत्वपूर्ण थी। इसके कारण न केवल देश की अर्थव्यवस्था को विकसित करने में मदद मिली बल्कि लघु उद्योगों को विकसित करने का एक उपकरण भी माना जा सकता है, देश के कोने-कोने में कृषि और कुटीर उद्योगों को विकसित करने का उपकरण बन गया था। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इसके कुछ नुकसान भी देखे गए लेकिन बैंकों का राष्ट्रीयकरण देश में समाजवाद को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण उपकरण बन गया था

कृपया ब्लॉग पर टिप्पणी करें, लाइक करें और साझा करें और मूल्यवर्धित सामग्री के लिए ब्लॉग से जुड़े रहें।

धन्यवाद

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *