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सरकार पहले ही भारतीय कृषि अधिनियम 2020 पारित कर चुकी है जिसके अंतर्गत तीन बिल शामिल है जो क्रमश: कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम, 2020, मूल्य आश्वासन पर कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता, और कृषि सेवा अधिनियम-2020, आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम-2020. (The Farmers’ Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Bill, 2020. The Farmers (Empowerment and Protection) Agreement on Prices Assurance, & Farm Services Bill, 2020, The Essential Commodities (Amendment) Bill-2020.) है इस ब्लॉग में हम नए कृषि अधिनियम 2020 जैसे बड़े अधिनियम में से पहले अधिनियम पर गहराई से चर्चा करेंगे और वह है “किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम, 2020“. हम पहले ही अपने पिछले ब्लॉग में अधिनियम के संवैधानिक पहलू पर चर्चा कर चुके हैं। यदि आपने ब्लॉग नहीं पढ़ा है तो कृपया ब्लॉग में दिए गए लिंक के साथ पहले ब्लॉग पर जाएं और पढ़ें। हम अलग ब्लॉग में दूसरे और तीसरे अधिनियम के बारे में भी चर्चा करेंगे इसलिए ब्लॉग के साथ बने रहें और प्रेरणा के लिए टिप्पणी करते रहें।

सबसे पहले मैं इस ब्लॉग के लेखक के रूप यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैं किसी सरकार का समर्थक नहीं हूं और न ही सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों का विरोधी हूं। मैं अपने आप को तटस्थ रखते हुए वर्तमान नए कृषि कानून के तथ्यों को जानना चाहता हूं। इस नए पारित कानून के पीछे बड़े आंदोलन का कारण क्या है? क्यों हजारों तथाकथित किसान इस कानून के खिलाफ सड़क पर उतर कर आंदोलन कर रहे हैं? लाल किले पर कब्जा करके आंदोलनकारी क्यों अपनी ताकत दिखाना चाहते हैं? आंदोलनकारियों ने दिल्ली में हजारों रुपये की सार्वजनिक संपत्ति को क्यों नष्ट कर दिया? यदि कानून में किसी सुधार की आवश्यकता है तो यह बातचीत के माध्यम से हल किया जा सकता है क्योंकि हम सभी दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के नागरिक हैं और हर किसी को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार है तो फिर ऐसा क्यों समझा जाता है कि सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करना एकमात्र समाधान है।
ये बातें लंबे समय से मेरे दिमाग को परेशान कर रही थीं क्योंकि सितंबर 2020 में आंदोलन शुरू हुआ था और लगभग एक साल बीत चुका है और अभी भी आंदोलन चल रहा है। मैं यह जानने के लिए बहुत उत्सुक हूं कि क्या ये नया कानून वास्तव में देश के एक किसान के भविष्य के लिए इतना हानिकारक है जितना विवाद हो रहा है या नया कृषि कानून 2020 पूरी तरह से समझ में नहीं आ रहा है। तो आइये हम सब मिल कर एक-एक विधेयक को विस्तार से समझाने की कोशिश करते है ।
जब से आंदोलन शुरू हुआ है, हम हमेशा सुनते हैं कि तीन बिल असंवैधानिक हैं और सरकार को इन तीनो अधिनियमों को वापस करना होगा। यहां मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि ये तीन अधिनियम “नए कृषि अधिनियम 2020” नामक एक बड़े कृषि सुधार अधिनियम का हिस्सा हैं और अधिनियमों के नाम नीचे दे रहा हु और एक बेहतर समझ के लिए अलग-अलग ब्लॉगों में एक-एक करके हर अधिनियमों के बारे में गहराई से चर्चा करेंगे और मुझे लगता है कि यदि कोई पाठक इस ब्लॉग को गहराई से एक बार पढ़ता है तो इस विषय पर और अधिक सामग्री देखने की आवश्यकता नहीं होगी तो आइए हम इसमें शामिल हों कर ब्लॉग का आनंद लेते है तथा मेरा आग्रह है कि ब्लॉग के स्पर्श में रहे।
तीन नए कृषि अधिनियम 2020 के नाम
अधिनियम की पीडीएफ प्रति भी यहां उपलब्ध कराई गई है।
03) आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 ( The Essential Commodities (Amendment) Act, 2020 )
पूरी चर्चा जानने के लिए मैं आप सभी को एक साथ सीखने के लिए आमंत्रित करता हूं। मुझे लगता है कि यह विषय नए नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, और एक सामान्य व्यक्ति भी अपने सामान्य ज्ञान की बेहतरी के लिए हमसे जुड़ सकता है, इसलिए ब्लॉग से जुड़े रहें और प्रेरणा के लिए टिप्पणी करते रहें।
सबसे पहले हम पहले अधिनियम पर चर्चा करने जा रहे हैं जिसका नाम है “कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम, 2020, The Farmers’ Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Act, 2020. किसी भी विषय पर चर्चा करने से पहले हमे विषय के बारे थोड़ा बहुत पता होना चाहिए इसी लिए अधिनियम की पीडीएफ कॉपी का लिंक ऊपर दिया गया है।
मुख्य रूप से जो उम्मीदवार प्रतियोगी परीक्षा या साक्षात्कार की तैयारी कर रहे हैं, उन्हें अधिनियम का पूरा ध्यान होना चाहिए क्योंकि परीक्षा में इससे सम्बंधित प्रश्न पूछे जा सकते है ।
कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम-2020. ( The Farmers’ Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Act- 2020.)
अधिनियम का नाम आसानी से सरकार के आदर्श वाक्य को व्यक्त करता है। अधिनियम के नाम से ही पता चलता है कि कृषि समस्याओं का समाधान करने के लिए सरकार द्वारा क्या कार्रवाई की जा रही है और देश में एक कृषक की वित्तीय स्थिति में सुधार के लिए पहल कैसे की जाए। और आसानी से समझने के लिए हम इस वाक्य को चार भागों में विभाजित कर सकते हैं।
01) कृषक की उपज
02) कृषि के क्षेत्र में व्यापार और वाणिज्य
03) अधिक कृषि गतिविधियों को बढ़ावा देना
04) कृषि गतिविधियों की सुविधा प्रदान करना ।
सरकार ने कहा कि अधिनियम एक पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण के लिए बनाया गया है जहां किसान और व्यापारी
उपज की खरीद और बिक्री से संबंधित स्वतंत्रता का आनंद लें सके, और एक प्रतिस्पर्धी वैकल्पिक व्यापार की स्थापना हो सके और जिसके माध्यम से लाभकारी कीमतों की सुविधा प्रदान हो सके । अधिनियम में यह भी उल्लेख किया गया है कि अधिनियम 5 जून, 2020 को लागू हुआ माना जाएगा।
इस अधिनियम में अधिनियम में प्रयुक्त शब्दों की परिभाषाएँ भी निम्नानुसार वर्णित हैं –
किसान की परिभाषा
अधिनियम के अनुसार किसान “Farmer” की परिभाषा उस व्यक्ति से है या किसान उत्पादक संगठन से है जो किसानों की उपज के उत्पादन में स्वयं या भाड़े के श्रम द्वारा से लगा हुआ हो या शामिल है।
“किसानों की उपज” की परिभाषा
अधिनियम में किसानों की उपज “farmers’ Produce” की परिभाषा के अनुसार इसे निम्नानुसार तीन श्रेणियों में बांटा गया है –
(i) गेहूं, चावल या अन्य मोटे अनाज जैसे अनाज सहित खाद्य पदार्थ, दालें, खाद्य तिलहन, तेल, सब्जियां, फल, मेवा, मसाले, गन्ना और मुर्गी पालन, सूअर पालन, बकरी पालन, मत्स्य पालन और डेयरी उत्पाद जो मानव के लिए अपने प्राकृतिक या संसाधित रूप में खपत के लिए अभिप्रेत हो,
(ii) तिलहन और अन्य सांद्रों सहित पशुओं का चारा,
(iii) कच्चा कपास चाहे ओटा हुआ हो या कच्चा, कपास के बीज और कच्चा जूट
इस कथन का सारांश यह है कि किसानों की उपज “farmers’ produce” की परिभाषा बहुत विशाल है। इसमें केवल वे किसान ही शामिल नहीं हैं जो केवल गेहूँ, चावल या अन्य मोटे अनाज जैसे खाद्य पदार्थ की पैदावार करने में लिप्त हैं बल्कि इसमें वे किसान भी शामिल हैं दालें, खाद्य तिलहन, तेल, सब्जियां, फल, मेवा, मसाले, गन्ना का उत्पादन करते हैं। परिभाषा में खेती में लिप्त व्यक्ति या संगठन को भी शामिल किया गया है जो मुर्गी पालन, सुअर पालन, बकरी पालन, मत्स्य पालन और डेयरी उत्पादों के उत्पाद करने में लिप्त हैं। परिभाषा में मवेशियों के चारे के उत्पादक, गिन्ड/अनगिन्ड कच्चे कपास, कपास के बीज और कच्चे जूट के उत्पादक भी शामिल हैं।
एक सवाल बहुत प्रासंगिक है कि जब इतने प्रकार के उत्पादकों और सेवा प्रदाताओं को इस अधिनियम में शामिल किया गया हैं तो केवल किसान ही सड़क पर उतर कर प्रदर्शन के लिए क्यों आये हैं या किसान ही अधिनियम का विरोध क्यों कर रहे हैं?
“किसान उत्पादक संगठन” की परिभाषा
अधिनियम के अनुसार “किसान उत्पादक संगठन” का अर्थ किसानों का एक संघ या समूह से है, जो कि (i) किसी कानून के तहत पंजीकृत हो जो फिलहाल लागू हो
(ii) केंद्र या राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित किसी योजना या कार्यक्रम के तहत पदोन्नत (sponsor) होना चाहिए
“व्यक्ति” की परिभाषा
अधिनियम के अनुसार “व्यक्ति” में शामिल हैं- (01) एक व्यक्ति (02) एक साझेदारी फर्म (03) एक कंपनी (04) एक सीमित देयता भागीदारी फर्म (05) एक सहकारी समिति (06) समिति (07) कोई भी व्यक्तियों का संघ या निकाय विधिवत रूप से निगमित या केंद्र सरकार के किसी भी चल रहे कार्यक्रमों के तहत एक समूह के रूप में या
राज्य सरकार; से मान्यता प्राप्त हो
“अंतर-राज्यीय व्यापार” की परिभाषा
अधिनियम के अनुसार “अंतर-राज्यीय व्यापार” का अर्थ है किसानों की उपज को खरीदने या बेचने के कार्य के सन्दर्भ में है जिसमें एक राज्य का व्यापारी किसी दूसरे राज्य के किसान की उपज को खरीदने की व्यवस्था की गई है तथा ऐसी व्यवस्था भी की गई है कि यदि किसान अपनी उपज को अपने राज्य के अलावा किसी अन्य राज्य में ले जाकर बेच सकता है जहां उसे अपनी उपज का अधिक मूल्य मिल सकता हो
“अंतरराज्यीय व्यापार” की परिभाषा
अधिनियम के अनुसार “अंतर-राज्य व्यापार” का अर्थ है किसानों की उपज को राज्य में खरीदने या बेचने का कार्य और किसान अपने उत्पाद को किसी भी व्यापारी को बेच सकता है।
“अनुसूचित किसानों की उपज” की परिभाषा
अधिनियम के अनुसार “अनुसूचित किसानों की उपज” का अर्थ है, कोई राज्य एपीएमसी (APMC) अधिनियम के तहत निर्दिष्ट कृषि उत्पाद का विनियमन
क्या है “राज्य एपीएमसी (APMC)अधिनियम”?
“राज्य एपीएमसी (APMC)अधिनियम” का अर्थ किसी भी राज्य विधान सभा या केंद्र शासित प्रदेश के कानून से है
जो उस राज्य में कृषि उत्पादन के लिए बाजारों को नियंत्रित करता हो
“व्यापार क्षेत्र” (“trade area” )क्या है ?
“व्यापार क्षेत्र” का अर्थ है उत्पादन का स्थान, संग्रह और एकत्रीकरण सहित कोई भी क्षेत्र या स्थान जिनमे शामिल है
01) फार्म गेट्स;
02) कारखाना परिसर;
03) गोदामों;
04) सिलोस;
05) कोल्ड स्टोरेज; या
06) कोई अन्य संरचना या स्थान,
जहां से भारत के किसी भी क्षेत्र में किसानों की उपज का व्यापार किया जा सकता है लेकिन परिसर, बाड़ों और संरचनाओं का गठन शामिल नहीं है
सरकार ने ये भी कहा कि अधिनियम तंत्र से एक कुशल, पारदर्शी और बाधा मुक्त अंतर-राज्य व्यापार को बढ़ावा देने के लिए कारगर रहेगा और किसानों को एक अवसर प्रदान करेगा जिसमे किसान अपनी उपज को अपनी भौगोलिक स्थिति से बाहर आ कर बेच पाएगा अर्थात कृषक अपनी उपज को अंतर-राज्य व्यापार और वाणिज्य के लिए विभिन्न राज्यों के तहत अधिसूचित बाजारों में भी अधिक लाभ प्राप्ति के उद्देश्य बेच सकता है
किसानों के उत्पाद के व्यापार और वाणिज्य का संवर्धन और सरलीकरण
अधिनियम के अनुसार सरकार किसानों की स्थिति में सुधार करने का प्रयास करते हुए कहा कि इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन, कोई भी किसान, व्यापारी या इलेक्ट्रॉनिक व्यापार को लेन-देन के लिए किसी भी मंच चाहे यह अंतर-राज्यीय या अंतर-राज्य व्यापार करने की स्वतंत्रता होगी और किसी भी व्यापार क्षेत्र के माध्यम से किसानों को अपनी उपज का वाणिज्य करने की स्वतंत्रता होगी।
केंद्र सरकार ने कहा है कि यदि यह राय होगी या यह आवश्यक है या यह जनहित में है, तो एक व्यापारी के पंजीकरण, व्यापार लेनदेन के तौर-तरीके और व्यापार क्षेत्र में अनुसूचित किसानों की उपज के भुगतान के तरीके के लिए इलेक्ट्रॉनिक तंत्र की एक निर्धारित प्रणाली शुरू की जा सकती है । व्यवस्था के सरलीकरण के क्षेत्र में अधिनियम में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि किसानों के साथ लेन-देन करने वाला प्रत्येक व्यापारी किसानों की उपज के व्यापार के लिए भुगतान उसी दिन या डिलीवरी की तारीख से अधिकतम तीन कार्य दिवसों के भीतर करना अनिवार्य होगा।
नए कृषि सुधार अधिनियम 2020 के अनुसार कोई बाजार शुल्क, उपकर या लेवी वसूल नहीं की जाएगी। चाहे उसे किसी भी राज्य के एपीएमसी अधिनियम के तहत किसी भी नाम से जाना जाता हो अधिनियम में यह भी स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि केंद्र सरकार, किसी भी केंद्र सरकार के संगठन के माध्यम से, किसानों की उपज के लिए मूल्य सूचना और बाजार आसूचना प्रणाली विकसित करेगा और इससे संबंधित सूचना के प्रसार के लिए ढांचा भी विकसित करेगा।
सरकार ने इस अधिनियम के माध्यम से कहा कि इस अधिनियम कृषि उपज बाजार विधान के द्वारा कृषकऔर व्यापारी को व्यापार के लिए एक सुविधाजनक ढांचा प्रदान में सहायक होगा और व्यापार और वाणिज्य के सरलीकरण, आधुनिकीकरण व पारदर्शिता लाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग की सुविधा प्रदान की जाएगी और उससे जुड़े या उसके आनुषंगिक मामलों को निपटाने के लिए उचित व्यवस्था की जाएगी
किसानों के लिए विवाद समाधान तंत्र
अधिनियम में प्रावधान है कि किसान और व्यापारी के बीच लेन-देन से उत्पन्न होने वाले किसी भी विवाद की स्थिति में दोनों पक्ष अनुविभागीय दंडाधिकारी (Sub-Divisional Magistrate) को अर्जी दाखिल कर सकते है ओर आपसी सुलह के माध्यम से पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान की तलाश कर सकते हैं यदि अनुविभागीय दंडाधिकारी (Sub-Divisional Magistrate) को लगता है कि विवाद को सुलझाने के लिए किसी बोर्ड की आवश्यकता है तो अनुविभागीय दंडाधिकारी (Sub-Divisional Magistrate) को सुलह बोर्ड नियुक्त करने का अधिकार होगा। प्रत्येक सुलह बोर्ड में एक अध्यक्ष और कम से कम दो सदस्य होंगे और यदि अनुविभागीय दंडाधिकारी (Sub-Divisional Magistrate) ठीक समझे
अधिनियम में प्रावधान है कि किसान और व्यापारी के बीच लेन-देन से उत्पन्न होने वाले किसी भी विवाद की स्थिति में दोनों पक्ष अनुविभागीय दंडाधिकारी (Sub-Divisional Magistrate) को अर्जी दाखिल कर सकते है ओर आपसी सुलह के माध्यम से पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान की तलाश कर सकते हैं यदि अनुविभागीय दंडाधिकारी (Sub-Divisional Magistrate) को लगता है कि विवाद को सुलझाने के लिए किसी बोर्ड की आवश्यकता है तो अनुविभागीय दंडाधिकारी (Sub-Divisional Magistrate) को सुलह बोर्ड नियुक्त करने का अधिकार होगा। प्रत्येक सुलह बोर्ड में एक अध्यक्ष और कम से कम दो सदस्य होंगे और यदि अनुविभागीय दंडाधिकारी (Sub-Divisional Magistrate) ठीक समझे तो सदस्यों की संख्या चार तक बढ़ा सकता है लेकिन सदस्यों की संख्या चार से अधिक नहीं हो सकती है ।
इस अधिनियम में एक प्रावधान किया गया है कि ऐसी स्थिति में जहां सुलह बोर्ड के तहत निर्धारित तरीके से तीस दिनों के भीतर विवाद को हल करने में असमर्थ होती है तो, पार्टियां संबंधित अनुविभागीय दंडाधिकारी (Sub-Divisional Magistrate) से संपर्क कर सकती हैं ऐसी स्थिति में अनुविभागीय दंडाधिकारी (Sub-Divisional Magistrate) ऐसे विवाद का निपटारा करने के लिए “उप-विभागीय प्राधिकारी” (“Sub-Divisional Authority”) के रूप में कार्य करेगा
अधिनियम के अनुसार “उप-विभागीय प्राधिकारी” (“Sub-Divisional Authority”) मामले को दर्ज करने की तारीख या पक्षकारों को सुनवाई का अवसर देने के बाद से तीस दिनों के भीतर विवाद का समाधान करेगा और आदेश पारित कर सकता है कि
(01) विवादाधीन राशि की वसूली हेतु
(02) अधिनियम के तहत सिफारिश के अनुसार जुर्माना लगाना,
(03) विवाद में व्यापारी को कोई व्यापार करने से रोकने (ऐसी अवधि जो वह ठीक समझे) के लिए और अनुसूचित किसानों की उपज का वाणिज्य, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस अधिनियम के तहत हो।
अधिनियम और नियमों के उल्लंघन के लिए जुर्माना
जो कोई अधिनियम में उल्लिखित प्रावधानों का उल्लंघन करता है, वह एक दंड का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होगा जो कि पच्चीस हजार रुपये से कम नहीं होगा,और पांच लाख रुपये तक हो सकता है, और जहां उल्लंघन जारी रहता है, यहां पहले दिन के बाद, प्रत्येक दिन के लिए पांच हजार रुपये से अधिक जुर्माना नहीं होगा।
अधिनियम में इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग और लेनदेन के लिए भी प्रावधान किया गया है। अधिनियम में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति, जो अधिनियम के तहत बनाए गए नियमों के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग और ट्रांजेक्शन प्लेटफॉर्म का मालिक, नियंत्रण या संचालन नियमों का उल्लंघन करता है, तो वह दंड का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होगा जो कि पचास हजार रुपये से कम नहीं होगा, लेकिन दस लाख रुपये तक हो सकता है और जहां यह उल्लंघन आगे जारी रहता है, यहां जुर्माना पहले दिन के बाद प्रत्येक दिन के लिए दस हजार रुपये से अधिक का जुर्माना नहीं होगा,
कुछ महत्वपूर्ण जानकारी
01) अधिनियम केंद्र सरकार को निर्देश, आदेश या कोई दिशानिर्देश जारी करने की शक्ति प्रदान करता है।
02) केंद्र सरकार या राज्य सरकार के खिलाफ कोई मुकदमा, अभियोजन या अन्य कानूनी कार्यवाही नहीं किया जाता है ।
03) अधिनियम में प्रावधान है कि किसी भी राज्य के एपीएमसी (APMC) अधिनियम के साथ भी अधिनियम प्रभावी होगा ।
04) किसी भी प्राधिकरण द्वारा निपटाए गए और निपटाए गए किसी भी मामले के संबंध में किसी भी नागरिक अदालत को किसी भी मुकदमे या कार्यवाही पर विचार करने का अधिकार नहीं होगा। इस अधिनियम द्वारा यह अधिकार प्राप्त है।
05) इस अधिनियम के तहत किए गए नियम, पारित आदेश और लेनदेन प्रतिभूति अनुबंध (विनियमन) अधिनियम, 1956 के तहत मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों और समाशोधन निगमों पर लागू नहीं होंगे।
06) केंद्र सरकार के पास इस अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए नियम बनाने की शक्ति होगी।
07) इस अधिनियम में यह स्पष्ट रूप से इंगित किया गया है कि इस अधिनियम के तहत केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए प्रत्येक नियम को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब यह सत्र में हो, और कुल तीस दिनों की अवधि में रखा जाएगा, यदि दोनों सदन नियम में कोई संशोधन करने के लिए सहमत हों या दोनों सदन सहमत हैं कि नियम नहीं बनाया जाना चाहिए, उसके बाद ही नियम लागू होगा।
08) यदि इस अधिनियम के प्रावधानों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है, तो केंद्र सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा, ऐसे प्रावधान लागू कर सकती है जो इस अधिनियम के प्रावधानों के साथ असंगत हो और जो इस कठिनाई को दूर करने के लिए आवश्यक प्रतीत हो।
सारांश
इससे पहले कि हम अपने विषय के निष्कर्ष पर पहुँचें, हमें एक ही बार में पूरे अधिनियम को संक्षेप में प्रस्तुत करना होगा। समझने की दृष्टि से हमें पूरे अधिनियम को चार भागों में विभाजित करना होगा और एक-एक करके व्याख्या को समझना होगा।
01) किसानों की उपज
02) व्यापार और वाणिज्य
03) संवर्धन
04) सरलीकरण
किसानों की उपज (the farmers’ produce) बहुत बड़ा विषय है, मुझे लगता है कि अधिनियम के अनुसार किसानों और उनकी उपज को अलग से संक्षेप में प्रस्तुत करना बेहतर होगा। अधिनियम के अनुसार किसान की परिभाषा बहुत विशाल है। आम तौर पर “किसान” और “किसानों की उपज” की उपज का अर्थ है खाने योग्य उत्पाद (अनाज) जो भूमि से उपजाने वाले या उपजाए जाते हैं जैसे गेहूं चावल आदि या इस तरह भी कहा जा सकता है कि कोई व्यक्ति जो भूमि से खाद्य सामग्री उपजाने के क्षेत्र में लगा हुआ है यह किसान कहलाता है और भूमि से उपजने वाले खाद्य पदार्थ कृषि उपज कहलाती है. लेकिन अधिनियम के अनुसार “किसान” और “किसानों की उपज” की परिभाषा में “खेती में सभी गतिविधियों को शामिल नहीं करता है बल्कि फल और सब्जियां उगाने में शामिल व्यक्ति भी शामिल है, फूल उगाने वाला व्यक्ति भी शामिल है। पशुपालन, मत्स्य पालन, सुअर पालन, मुर्गी पालन, मछली पालन जैसे पशुपालन में लगे व्यक्ति भी शामिल हैं, दूध और दुग्ध उत्पादों के पेशे में लगे व्यक्ति भी शामिल हैं। इस अधिनियम में सभी कृषि गतिविधियों को शामिल किया गया है।
इस अधिनियम का अगला मुख्य पहलू किसान की उपज का व्यापार और वाणिज्य है। दूसरे शब्दों में इन कृषि उत्पादों को बेचने और खरीदने के क्षेत्र में नई राह बनाने के लिए उठाये गए कदम।
मैं यहां स्पष्ट करना चाहता हूं कि “व्यापार” क्या है। और “वाणिज्य” क्या है। व्यापार केवल वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री और खरीद है, इसका मतलब है कि अगर थोक विक्रेता किसान से 10 रुपये में उपज खरीदता है और उस उत्पाद को खुदरा विक्रेता को 20 रुपये में बेचता है और खुदरा विक्रेता उस उपज को 35 रुपये में खुले बाजार में बेचता है तो इसे ट्रेडिंग कहा जाता है।
वाणिज्य शब्द में व्यापार सहित सभी वाणिज्यिक गतिविधियां शामिल हैं, इसका मतलब है कि अगर थोक विक्रेता ने उत्पाद को जूट या प्लास्टिक बैग में पैक किया है और उत्पाद के बिक्री मूल्य में बैग की लागत शामिल कर के उस उत्पाद का लागत मूल्य तय किया और उसके बाद खुदरा व्यापारी को बेचा और खुदरा व्यापारी ने उत्पाद को छोटे पैकिंग में पैक किया और लागत को शामिल कर के बेचा । यह पूरी प्रक्रिया को वाणिज्य कहलाता है। अगर हम कहें कि व्यापार वाणिज्य का हिस्सा है तो गलत नहीं है। मुझे लगता है कि मैंने व्यापार और वाणिज्य शब्द को भली प्रकार से स्पष्ट कर दिया है। यदि समझ में आया हो तो कमेंट अवश्य करें।
अगला महत्वपूर्ण कारक कृषि उत्पादों के व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा देना है। इस क्षेत्र में ऑनलाइन व्यापार के लिए सुझाव दिया गया अधिनियम जो अंतरराज्यीय और साथ ही अंतरराज्यीय व्यापार के नए मार्ग को विकसित करने में मदद करता है। सरकार सोचती है कि क्यों न कृषि बिक्री और खरीद बाजार भी स्टॉक एक्सचेंज बाजार के रूप में विकसित हो जहां किसान और व्यापारी कुछ आवश्यक दस्तावेजों या कुछ शुल्क का भुगतान करके खुद को पंजीकृत करें और किसान वहां कीमत और गुणवत्ता के साथ अपने माल को सूचीबद्ध करें और यदि कोई बड़ा व्यापारी, खुदरा व्यापारी या उपभोक्ता उस सामान को खरीदना चाहता हो, वह ऑनलाइन खरीद सकता हो और लागत का भुगतान ऑनलाइन कर सकता हो और सामान सीधे ग्राहक को भेजा सकता है।
मेरे विचार से यह सरकार द्वारा की गई एक अच्छी पहल है।
इस अधिनियम का अंतिम लेकिन बहुत महत्वपूर्ण पहलू अधिनियम के निष्पादन का सरलीकरण है। इस संबंध में अधिनियम में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि नया कृषि अधिनियम 2020 किसी भी राज्य सरकार द्वारा अभी तक किए गए सभी अधिनियमों का स्थान लेगा और यह अधिनियम सहमति के प्रयास पर एक न्यायिक पहलू भी प्रदान करेगा और निर्णय की समय सीमा 30 दिनों के साथ तय की जाएगी और अधिनियम में एक प्रावधान है कि न्यायिक पहलू सिविल कोर्ट में कोई अपील नहीं की जा सकेगी।
प्रावधान
नए कृषि अधिनियम 2020 के अनुसार किसानों के उत्पादों के व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा देने की अवधारणा को सफल बनाने के लिए प्रावधान किया गया है। यह इस प्रकार हैं –
01) एपीएमसी के बाहर व्यापार क्षेत्र – इस शब्द का अर्थ इस अधिनियम के अनुसार किसानों को एपीएमसी (कृषि उपज विपणन समिति) के बाहर अपनी उपज बेचने का अधिकार होगा। इस अधिनियम से पहले किसान अपने स्थानीय एपीएमसी में उपज बेचने के लिए बाध्य था। लेकिन इस नए कृषि अधिनियम 2020 के अनुसार अपनी उपज को नए व्यापार क्षेत्रों में भी बेच सकता है।
व्यापार क्षेत्र के लिए फार्म गेट उसका खेत भी हो सकता है (अपने खेत पर ही अपनी फसल की खरीद फरोख्त कर सकता है), यह कोई भी गोदाम हो सकता है, यह कोई कोल्ड स्टोर हो सकता है, यह खाद्य प्रसंस्करण इकाई हो सकता है, यह कोई भी निर्यातक हो सकता है। इसका मतलब है कि उपज का निर्माता अब अपनी उपज को एपीएमसी के अलावा कहीं भी बेचने के लिए स्वतंत्र है और इसे अपराध नहीं माना जाएगा।
अगला प्रावधान यह है कि किसान अब व्यापार को अंतर्राज्यीय या अंतरराज्यीय करने के लिए अधिकृत है। इस शब्द का अर्थ यह है कि किसान देश में कहीं भी अपनी उपज का व्यापार कर सकता है। इसका अर्थ है कि यदि किसान उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर में रहता है और उसे मालूम चलता है कि राज्य के दूसरे हिस्से में उसकी उपज की मांग और कीमत अधिक है, तो वह उस क्षेत्र में अपना उत्पाद बेच सकता है और अधिक लाभ प्राप्त कर सकता है और यदि उसे मालूम चलता है कि दूसरे राज्य में उसकी उपज की कीमत अधिक है तो वह अपनी उपज को दूसरे राज्यों में भी बेचने और उनकी उपज का अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए भी स्वतंत्र है।
इस नए कृषि अधिनियम 2020 का नया पहलू ऑनलाइन ट्रेडिंग है। अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण के सरकार के प्रयासों में बड़ा कदम है और कृषि छेत्र के लिए भी एक ऑनलाइन नेटवर्क बनाने का प्रस्ताव है जहां कृषि उत्पादों को स्टॉक एक्सचेंज बाजार की तरह आसानी से ऑनलाइन बेचा और व्यवस्थित किया जा सकेगा।
अगला महत्वपूर्ण प्रस्ताव इस नए कृषि अधिनियम 2020 में राज्य सरकार को प्रस्तावित नए फार्म गेटों पर किसी भी प्रकार का शुल्क, कर या उपकर लगाने के लिए प्रतिबंधित किया गया है क्योंकि कृषि राज्य सूची का विषय है और सरकार को डर था कि इस अधिनियम के बाद राज्य सरकार इन नए प्रस्तावित फार्म गेटों पर लेन-देन पर उच्च कर लगा सकती है और किसान को प्रस्तावित अधिनियम का लाभ उठाने में बाधा उत्पन्न कर सकते है।
नए कृषि अधिनियम 2020 का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण पहलू मजबूत, कम समय लेने वाला और आपसी सहमति पर आधारित एक मजबूत विवाद निपटान तंत्र का प्रस्ताव है। इस तंत्र में यदि कोई विवाद उत्पन्न होता है तो विवादित पक्ष क्षेत्र के अनुमंडल पदाधिकारी (sub-divisional magistrate) से शिकायत कर सकते हैं। एसडीएम एक अध्यक्ष और अधिकतम चार सदस्यों वाली एक समिति बना सकता है जो आपसी सहमति से विवाद को तीस दिनो के भीतर सुलझाने का प्रयास करेगा।
यदि किसी भी मामले में आपसी सहमति न बन पाए तो एसडीएम दोनों पक्षों को बुलाकर मामले को सुलझाने की कोशिश करेगा और 30 दिनों के भीतर अपना फैसला सुनाने के लिए बाध्य होगा । शिकायतकर्ता के पास अंतिम उपाय है की यह जिले के कलेक्टर के पास अपील कर सकता है और कलेक्टर को 30 दिन में समस्या का समाधान करना होगा। अधिनियम में प्रावधान किया गया है कि मामला किसी भी सिविल कोर्ट में नहीं जा सकता है।
मेरी जानकारी के अनुसार प्रस्तावित अधिनियम में बाते अच्छी बाते अधिक हैं बनिस्पत खराब बातो के और इसे सहमति से हल किया जा सकता है।
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